25 जून 2012
मुम्बई। देश की अर्थव्यवस्था और मुद्रा में जान फूंकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने सोमवार को सरकारी और कारपोरेट बांड्स में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ा दी तथा कई अन्य उपायों की घोषणा की। सरकारी बांड्स में विदेशी निवेश की सीमा पांच अरब डॉलर बढ़ाकर 20 अरब डॉलर की गई और विदेशी वाणिज्यिक ऋण की सीमा बढ़ाकर 10 अरब डॉलर की गई।
इन कदमों का मकसद अधिक से अधिक विदेशी निवेश हासिल करना है, ताकि डॉलर के मुकाबले 57.33 का रिकार्ड निचला स्तर छू चुकी भारतीय मुद्रा रुपया में मजबूती आए।
रिजर्व बैंक ने एक बयान में कहा कि उसने सरकार के साथ चर्चा कर ये कदम उठाए हैं।
केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने दिन के पहले हिस्से में कहा था कि रुपया और अर्थव्यवस्था में मजबूती के उपाय निश्चित करने के लिए आर्थिक मामलों के सचिव आर. गोपालन रिजर्व बैंक के साथ चर्चा कर रहे हैं।
रिजर्व बैंक ने कहा कि विदेशी पूंजी की आय वाली विनिर्माण और आधारभूत संरचना क्षेत्र की भारतीय कम्पनियों को रुपये में अपने बकाए महंगे कर्ज को चुकाने के लिए विदेशी वाणिज्यिक ऋण हासिल रकने की अनुमति देने का फैसला किया गया है।
रिजर्व बैंक ने कहा कि ऐसे ईसीबी के लिए ऊपरी सीमा 10 अरब डॉलर होगी।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) में पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के लिए सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश की मौजूदा सीमा को पांच अरब डॉलर बढ़ाया गया।
इससे एफआईआई के लिए सरकारी प्रतिभूति में निवेश की ऊपरी सीमा 15 अरब डॉलर से बढ़कर 20 अरब डॉलर हो गई।
रिजर्व बैंक ने कहा कि सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश के लिए अनिवासी निवेशकों का आकार बढ़ाने के लिए सॉवरेन वेल्थ फंड, मल्टीलैटरल एजेंसी, एंडोमेंट फंड, इंश्योरेंस फंड, पेंशन फंड और विदेशी केंद्रीय बैंकों जैसे लम्बी अवधि निवेशकों को भी सेबी में पंजीकृत होने की अनुमति देने का फैसला किया गया।
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